'''Nagavanshi|नागवंश का परिचय'''
नागवंश के लोगों को कई नामों से जाना जाता है जैसे - नाग, ऐरावत, अनंत, अहि,
पणि, मणि, फणि, काला, पद्म, धर्मन, वर्मन, चंद, नंद, दित्य, तक्ष, दाता, ठक आदि ।
नागवंशियों को वेदों में दैत्य, असुर, राक्षस, यक्ष, दानव के नाम से संबोधित किया गया त्य, असुर, राक्षस,
है । महायानी ग्रंथों में असुर और यक्षों को बोधिसत्वों का सहायक बताया गया है ।
भारत में नाग पूजा के प्रमाण आज भी खूब देखने को मिलते हैं ।
नाग पंचमी का उत्सव नाग राजाओं का सबसे प्रसिद्ध उत्सव था, जो आज भी सम्पूर्ण भारत में प्रचलित है ।
नागवंश में कई महान राजा हुए जिन्हें नाग देवता के नाम से आज भी संबोधित किया जाता है । उनकी पूजा सर्प के रूप में आज भी भारत में देखी जा सकती है ।
भारत में नाग देवता की पूजा इतनी आम है कि अधिकतर प्राचीन मूर्तियों से लेकर
मंदिरों तक में, नाग की आकृतियां स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं, जो स्वतः प्रमाणित करती हैं कि इन मूर्तियों का सम्बन्ध किसी न किसी समय में नागवंशी राजाओं से जरूर है रहा है ।
भारत में कई बड़े नगर नागवंशी राजाओं के नाम पर आज भी, पूरे देश में देखने को मिलते हैं जैसे - नागपुर, नागदा, नागौर, अनंतनाग आदि
नागवंशियों ने ही भारत में बड़े नहरों के निर्माण की प्रथा को प्रारम्भ किया था |
हड़प्पा सभ्यता नागवंशियों की सभ्यता थी, क्योंकि उसमें मातृसत्ता का प्रचलन था । मातृसता नागवंशियों की पहचान मानी जाती है ।
'''पूर्ववर्ती नागवंश का इतिहास'''
नागवंश भारत का सबसे प्राचीन राजवंश था । भारतीय इतिहास में नागवंश को अन्य नामों हर्यंक वंश, शाक्य/ओक्काकु, कोलिय, मल्ल, विदेह, लिच्छवी, शिशुनाग वंश, नन्द वंश, मोरिय वंश आदि के नाम से जाना जाता है ।
इन राजवंशों को प्राचीन नाग राजाओं का वंशज माना जाता है ।
भारतीय इतिहास की शुरूआत मगध के राजा बिम्बिसार के हर्यंक वंश या पितृहंता वंश से की जाती है ।
राजा बिम्बिसार के वंश को हर्यंक और पितृहंता नाम इतिहासकारों के द्वारा दिए गए काल्पनिक नाम हैं, जबकि इस वंश का वास्तविक नाम नागवंश है ।
भारतीय इतिहास में हर्यंक वंश के 7 राजाओं बिम्बिसार, अजातसत्तु, उदयन, अनिरुद्ध, मुण्ड, दस्सक और नागदसक का इतिहास पढ़ाया जाता है ।
हर्यंक वंश के अंतिम राजा का नाम नागदसक था जिसके नाम में ही नाग शब्द जुड़ा हुआ है । साफ - साफ दिखाई देता है कि इस वंश के राजा नागवंशी थे ।
हर्यंक वंश के अंतिम राजा नागदसक को एक दूसरे नागवंशी सिसुनाग के द्वारा मगध की राजगद्दी से उतार दिया गया था ।
मगध पर एक नए राजवंश शिशुनाग की शुरूआत हुई जो नागवंशियों का ही एक
वंश था ।
शिशुनाग वंश के पश्चात् नन्द वंश का उदय हुआ जिसके राजा अपने नाम में ही नंद और पदम शब्द लगाते थे, जो नागवंशियों के ही नाम थे ।
नंद वंश के पश्चात मोरिय वंश का उदय हुआ । असोक के शासनकाल में पण या पणो
नाम के सिक्क चलते थे जिसका अर्थ है कि मोरिय वंश भी नागवंशियों का एक वंश था । कई ग्रंथों में इसके प्रमाण भी देखने को मिलते हैं ।
दक्षिण के संगम साहित्य में मोरिय राजाओं को नागों का वंशज बताया गया है ।
राजपूताना के प्राचीन साहित्य और शिलालेखों में भी मोरिय राजाओ को नाग जाति से सम्बंधित बताया गया है, जिससे परमार वंश का उदय हुआ ।
महावंश में शाक्यों को सूरिय वंश (सूर्य वंश और ओक्काकु (इक्ष्वाकु) कुल का बताया गया है ।
दीघनिकाय के परिनिब्बान सूत के अनुसार रामगाम के कोलिय नागवंशी बुनकर थे ।
ललितविस्तर और महावस्तु के अनुसार शाक्य मुनि बुद्ध को ओक्काकु यानि इक्ष्वाकु कुल का नाग बताया गया है ।
जो नागवंशी इक्ष्वाकु थे, वे ही शाक्य, कोलिय, मल्ल, लिच्छवी, मोरिय के नाम से
जाने गए ।
'''उत्तरवर्ती नागवंश का इतिहास'''
विदिशा के नागवंशी राजाओं की जानकारी मथुरा के दाता राजाओं के सिक्कों से मालूम होती है ।
उत्तरवर्ती नाग राजाओं में सबसे शक्तिशाली अनंतनाग यानि शेषनाग को माना जाता है
शेषनाग ने अपनी राजधानी विदिशा में बनाई थी
शेषनाग का शासनकाल 110 ई. पू. से 90 ई. पू. के मध्य में माना जाता है ।
शेषनाग का वास्तविक नाम सेसणो या शेषदाता है जिसे इतिहासकार शेषदत्ता के नाम से लिखते हैं, जो पूर्णतः असत्य है ।
शेषनाग के बाद उसका पुत्र भोगिन विदिशा का राजा बना जिसका शासनकाल 90ई. पू. से 80 ई. पू. के मध्य में था ।
राजा भोगिन को नगरों को ध्वस्त करने वाला राजा कहा जाता था
भोगिन के बाद विदिशा का राजा रामचंद बना जिसे सदाचंद के नाम से भी जाना जाता है ।
रामचंद का शासनकाल 80 ई.पू. से 50 ई.पू. के मध्य में था ।
रामचंद के बाद विदिशा का राजा धम्म वरमन बना जिसका शासनकाल 50 ई. पू. से 40 ई. पू. के मध्य में था ।
धम्म वरमन के बाद विदिशा का राजा वंगारा बना जिसका शासनकाल 40 ई. पू. से
31 ई. पू. के मध्य में था । .
वंगारा के शासनकाल में ही सातवाहन राजाओं ने विदिशा पर अधिकार कर लिया था जिसके कारण इन्हें वहां से पलायन करना पड़ा और अपनी राजधानी पवाया या पद्मावती को बनाया |
वंगारा के बाद भूतनंद पवाया का राजा बना जिसका शासनकाल 20 ई. पू. से 10 ई. पू. के मध्य में था ।
भूतनंद के बाद सिसुनंद पवाया का राजा बना जिसका शासनकाल 10 ई. पू. से 25 ई. Был в середине.
После Шишунанды царем стал Ясананда, правление которого неизвестно.
После Яснанды Пурушадата, Уттамдата, Камадата, Бхавдата и, наконец, Шивадата стали царем Павайи, захваченной кушанами в 78 году нашей эры.
Источник: - https://youtu.be/Fsslvw2w1oY?si=XBoMLNz-5rXePkNv
Исторические источники
*Махавамса и Лалитвистара - буддийские тексты *Раскопки Ахара - Санкалии
*История Раджпутаны - Гауришанкар Джа
* Буддийская Индия – Дэвид Рахиз
*История ранней каменной скульптуры в Матхуре - Соня Рахе
Подробнее: https://en.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6 ... %E0%A4%BE)
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